यह व्रत होली के आठवें दिन होता है जिसे बसोडा
भी कहते है. सप्तमी के दिन यथा स्थिति पकवान बनाते है। मानते हैं की इस दिन भोजन नहीं बनाया जाता बासी
खाने को देवी का भोग लगा कर भोग को प्रसाद के रूप में लिया जाता हैं. इसी वजह से इसे बसोडा कहतें हैं.
जिस दिन की होली मनाई जाती हैं उसी दिन का
बसोडा होता हैं. अगर बासी खाना संभव नहीं
हो पाता है तो बासी खाने से मुँह विटार कर मतलब जूठा कर ताज़ा भोजन कर सकते हैं.
माता को भोग में पूरी सब्ज़ी, पुआ व् रात को बनाए मीठे चावल या हलुआ चढ़ाएं. इसमें घर में
पूजन करके खाने का व् पूजा का सामान घर के बाहर चौराहा पर रखते हैं.
• पूजा
की थाली तैयार में शीतला माता की एक मिटटी की मूर्ती रखे फिर एक लाल वस्त्र उनको
पहनाये. आटे से बना दीपक, रोली, मोली और मेहंदी रखे. थाली में पुआ, मीठेचावल, नमक पारेऔर मठरी जो भी संभव हो रखे
• थाली
के साथ लोटे में जल रखे । माता की पूजा कर दीपक को विना जलाए ही मंदिर में रखें और
माता को सभी चीज़े चढ़ानेके बाद खुद और घर के सभी सदस्यों को टीका लगाएं।
• घर
में पूजा करने के बाद अब मंदिर में पूजा कर। मंदिर में पहले माता को जल चढ़ाएं.
रोली और रोली का टीका कर मेहंदी, मोली अर्पित कर।
आटेके दीपक को विना जलाए अर्पित कर अंत में वापस जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाएं। इसे
घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं और थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़के इसके बाद
चौराहे पर पूजा कर। थोड़ा जल चढ़ाएं और पूजन सामग्री चढ़ाएं। घर आनेके बाद पानी
रखनेकी जगह पर पूजा कर। अगर पूजन सामग्री बच जाए तो गाय को दे।
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