जिस स्थान पर फेरे होते हैं उसी स्थान पर गौर की पूजा होती है। शाम को चौक पूर कर उस पर चौकी बिछा कर लाल कपड़ा बिछाते हैं, नाला बाँधते हैं, लड़की को पाँचों गहने- पहना कर गोटे वाली चुन्नी ओढ़ाते हैं। मंडप में दो कूंड, साड़ी ब्लाउज व सात बरतन रखते हैं। एक बरतन में मैदा, बेसन, साबुत मूंग, चावल, मँगोड़ी उबटना रखते हैं। कूंड मे 2 छाक, 2 बड़े लड्डू व साड़ी रखते हैं। कटोरी में घी की जोत जलाते हैं। एक परात में पानी, कच्चा दूध, साबुत हल्दी डाल कर रखते हैं। कुंडी पर मौली बाँध कर सवा किलो चावल रखते हैं।
गौर देने वाली का गठजोड़ा बाँधा जाता है। लड़की अपने पैर परात में रख कर बैठती है। फिर सभी लोग लड़की के साथ चारों तरफ सात फेरी लगाते हैं।
फेरी देते समय थोड़े-थोड़े चावल लेते रहते हैं और उस पर डालते रहते हैं। बीच-बीच में लड़की के पैर भी छूते रहते हैं। दूब से पैर धो कर सब लड़की को शगुन देते हैं और आशीर्वाद देते हैं। गौर का सामान लड़की के ससुराल जाता है।
लड़का या लड़की उसके बाद स्नान करते हैं। स्नान के बाद मामा उनको पाटा उतारता है। उस समय पाटे के पास मिटटी के पाले रख कर रखकर उसको एक पैर से फोड़ा जाता है।
पाटा उतार कर मामा गोद में लेकर लड़की को मांडे के नीचे छोड़ता है और लड़के को निकास के लिए बैठाता है।
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