कार
दूल्हे के परिवार के घर के लिए बरात के साथ रवाना होती है।
लेकिन
विवाहित महिलाएं, विशेष
रूप से भाभी, बहनें
और दूल्हे की मां बरात से पहले लौट जाती हैं क्योंकि स्वागत करने के लिए उन्हें क्योंकि उन्हें गेट पर नव-विवाहित दूल्हा और दुल्हन का स्वागत करना है।
गृह प्रवेश (Grah Pravesh)
दूल्हे
के माता-पिता दोनों वर-वधू को बड़े लाड़-प्यार से हाथ पकड़कर वाहन से उतारते हैं।
वधू की ननद आरते की थाली लेकर वर-वधू का आरता
करती है।
बाड़
(बार/):
वर जब
वधू को लेकर घर में प्रवेश करता है तो उसकी बहिन दोनों हाथ फैलाकर बाड़ रुकाई मांगती है। उन्हें घर में तब तक प्रवेश करने नहीं
देती जब तक उसे मुँह माँगा नेग नहीं दिया जाता। वर के पिता को इस अवसर पर अपनी
अंटी ढीली करनी पड़ती है।
विदाई
के बाद सुसराल में गृहप्रवेश के साथ ही दुल्हन एक नए जीवन में प्रवेश करती है। ऐसे
में गृहप्रवेश की रस्म भी बेहद महत्पूर्ण होती है, जिसमें घर की सभी महिलाएं नई दुल्हन गृहलक्ष्मी
का स्वागत करती हैं।
दूल्हा दुल्हन के
के घर पहुंचने पर मंगल गीत गा कर दूल्हे की मां द्वारा नए जोड़े का स्वागत कर गेह प्रवेश कराती है
दुल्हन चावल से भरे एक कलश को गिराकर अपने ससुराल में प्रवेश करती है, यह दर्शाता है कि वह अपने नए परिवार में
अन्नपूर्णा के रूप में प्रवेश करने वाली है. फिर वह अपने पैरों को लाल सिंदूर के मिश्रण में डुबोती है और फर्श पर पैर के निशान छोड़कर घर में प्रवेश करती है.
इस रस्म को इसलिए
निभाया जाता है क्योंकि दुल्हन को देवी लक्ष्मी का रूप माना जाता है. और यह रस्म घर में लक्ष्मी और धन-धान्य के आगमन
का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद दूल्हा
दुल्हन और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ
शादी के कई खेल खेले जाते हैं.
शादी के रस्मों
में मेहमानो की खातिरदारी व् नए जोड़े को
आशीर्वाद देने के लिए पूरा करने के बाद एक रिसेप्शन का भी आयोजन किया जा सकता है.
मुँह दिखाई
मुँह दिखाई की रस्म में सास, रिश्तेदार व पड़ोस की महिलाएँ नववधू का घूँघट
खोलकर उसे शगुन देती हैं कि कहीं उनकी प्यारी सी नै बहु को नजर न लग जाए, इसलिए खूब सारी बलैया लेती हैं। यह परंपरा बहू के चेहरे को देखने के लिए शुरू की गई।
देवी धाम :-
देवी-देवता
की धोक: विवाह
(बिना किसी
विघ्न के) सम्पन्न हो जाने पर देवी-देवताओं के धोक लगाई जाती है।
अगले दिन सुबह
दुल्हन के सिर धोने के बाद सभी दूल्हा-दुल्हन व्को परिवार केर अन्य सदस्य मन्दिर
जाते हैं। देवी-देवताओं की धोक लगाकर साठकी खेलते हैं। दूल्हन के साथ देवर और ननदोई सात सात बार आपस में नीम की डाली से एक-दूसरे को हल्के-हल्के मारते हैं।
सोटा-सोटी
खेलना: सुहागथाल के दिन ही 'तब' वर-वधू के बीच की शर्म-झिझक को दूर करने हेतु 'तब' उनके मध्य कुछ खेल आयोजित करवाये जाते थे! उनमें प्रमुख था छड़ी / सोटा-सोटी (बेंत मारना)
का खेल। इस खेल में पेड़ की हरी लचीली डाली (शाखा) तोड़कर उसे बेंत के रूप में इस्तेमाल
करके व्क उसमे चरों तरफ से फूल से कवर कर लेते हैं फिर उससे एक दूसरे को सात-सात
सुटकी मारते थे! वर की भाभी वर-वधू दोनों के हाथ में छड़ी पकड़ा कर दोनों को चक्कर
लगाते हुए एक दूसरे पर उसका वार करने को कहती थी। नव-नवेली वधू को पति और वधु पति
को - एक दुसरे को छड़ी से वार करते हैं। यह
रस्म पत्नी की अपने पति के प्रति लगाव को
इंगित करती है और सकुचाहट को भी ख़तम करती है आज की पीढ़ी इसे यों समझ सकती है कि उस दौर में
ये रस्म वर-वधू की एक आज की
पीढ़ी इसे यों समझ सकती है कि उस दौर में ये रस्म वर-वधू की एक क़िस्म की रैगिंग
थी। वधू अपने देवर के साथ भी छड़ी खेलती थी।
प्रथा के अनुसार यह रस्म निभाने तक कुछ खाया नहीं जाता। देवताओं पर चढ़ाने के लिए पैसे, लड्डू, मट्ठी, पापड़ और मंगोड़ी (वर की ससुराल की) की तरफ से रखा जाता है
कगना:-
कांगना
दूल्हा-दुल्हन को वह भाभी खिलाती है, जिसने काजल डाला हो। दोनों आपस में कांगना में लगी सात गांठ को एक-एक करके
खोलते हैं। दूल्हे को एक हाथ से खोलने की और दुल्हन को दोनों हाथ से खोलने की
इजाजत होती है, कई जगह ये रस्में
मायके में पूरी की जाती है।
अंगूठी
ढूंढने की रस्म
शादी की
अतिव्यस्तता के बाद आखिर में दुल्हा-दुल्हन के बीच अंगूठी ढूंढने की रोचक रस्म
होती है, जिसमें एक बड़े से थाल
में दूध और गुलाब की पुंखुड़ियों के बीच दोनो को एक अंगूठी ढ़ूढ़नी होती है। माना
जाता है कि वो अंगूठी जो पहले ढ़ूंढ़ लेता है, दाम्पत्य जीवन में उसकी ही चलती है। ऐसे में इस रस्म में
काफी हंसी मज़ाक होता है सात सुहागन बैठाकर सुहाली और लड्डूओं में हाथ लगवाते हैं। चार-चार लड्डू सबको देते हैं। थैली में बहू से हाथ डलवाते हैं
जितने पैसे हाथ में आते हैं उन पैसो को लड़कियो में बांट देते हैं। देवर भाभी की
गोद में बैठगा " भाभी नेग देती है फिर देवर उठता है।
सिरगुंधी
अच्छा दिन देखकर सिरगुंधी करते हैं। थाल में दाल, चावल व रूपये रखकर सभी औरतें वारफेर करती हैं। सब सामान लड़की को देती हैं।
देवी-
देवता उठा कर रख देते हैं। फिर मढ़ा और बाकी सब समान थैली में भरकर तालाब पर ले जाते हैं। हल्दी व पानी से चौक लीप कर, सतिया बनाकर कुछ सामान उस पर रखते हैं और वाकी समान तालाब में सिरहा देते हैं।
पगफेरा :-
शादी के बाद ससुराल से दूल्हन का भाई उसे लेने जाता है तब उसके साथ तमोल के रुपये भेजे जाते हैं। सास की साड़ी-ब्लाउज भेजी जाती है, साथ में फल और मिठाई भी जाती है।
पगफेरे पर जब बेटी घर पहुँचती है तब मांडा और रखड़ी खुलवाने की रस्म भी निभाई जाती है। इसके लिए हलवा सात कन्याओं में बांटा जाता है। फिर मांडा खोलकर दूसरी जगह या तो रख दिया जाता है या सवा महीने के लिए बांध दिया जाता है। पहली बार जँवाई जब भोजन करता है तो घर की स्त्रियाँ जीजा एवं जँवाई के गीत गाती हैं। विदा करते वक्त बेटी को चुनड़ी ओढ़ाकर देहली (दहलीज) की धोक लगवाकर विदा किया जाता है।
PHOOL SAJJA
The bride and groom officially symbolize their marriage
on this first night together in bed. This completes the wedding cycle and marks
the beginning of the couple's oneness in body, mind, and soul.
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